Monday, August 15, 2016

जश्न ए आज़ादी

बेटा बब्लू...।अगर जश्न- ए-आज़ादी का खुमार उतर गया तो बॉस से बात कर लियो।फ़ोन आया था कि अर्जेंट है इसलिए कल दो घंटे पहले ऑफिस पहुंचियो।वरना कभी ऑफिस ही न अइयो।
नालायक कहीं का।कहता है कि देश दुनिया की नब्ज़ पर नज़र रखता हूँ लेकिन पड़ोस में क्या से क्या हो गया कुछ पता ही नहीं।सिर्फ  लाइक-कमेंट्स का खेल ही खेलता है।हिसाब-किताब तो ऐसे करता है जैसे वोट की काउंटिंग।किस खेमा से कितना आया।कौन मुआ अबतक मुंह मोड़ा हुआ है।कहाँ से रिटर्न्स नहीं आया।
 और हाँ! सुन रहे हो न।सदभावना सेमिनार वाले भी आए थे।तुम गुलाब बांटकर आये और वो दो-चार भद्दी-भद्दी गालियां दे गए ...। साथ ही उपाधि भी।कालिख पोतने वाली कौम की।
मुआ तुम लोग न महान हो। गंदगी घर में और झाड़ू सड़क पर लगाते हो।एक छत के नीचे रहते मियां-बीवी और भाई-बहन में बातचीत नहीं और बाहर भाईचारा पर लंबा-लंबा फेंककर आते हो।ख़ुशी तो एक-दूसरे की देखी नहीं जाती।बस कभी रोती सूरत देखकर ही सही साथी या पड़ोसी से पूछ लिया करो आप कैसे हो ? बाकी तो उनको भी पता है कि जो जहां है वहीँ दुःखी है।फिर कहो जग में भला कौन सुखी है।सत्तर क्या सौ साल में भी निराशा और नाउम्मीद खत्म होने वाली चीज़ नहीं।इसलिए बब्लू के पिताजी साल में दो बार अदम गोंडवी को याद करते हुए कहते थे :
सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद है।
दिल पे रखके हाथ कहिये कि देश क्या आज़ाद है।।