Sunday, July 24, 2016

इश्क,इलेक्शन और इमोशनल अत्याचार

इश्क, इलेक्शन और इमोशनल अत्यचार।तीनों की कोई सीमा नहीं।जितना करो कम है,जितना सहो कम है।तीनों में सबकुछ जायज।तीनों का आगाज़ अच्छा लेकिन अंजाम ? कल्पना न करें तो बेहतर।
क्योंकि तीनों क्रिकेट के कई फॉर्मेट में खेले जाते हैं।इसलिए आखिरी गेंद और विकेट तक कुछ कह नहीं सकते।अलग बात है कि इलेक्शन में कयास के कारोबारी पहले से शोर मचाते हैं कि इस बार बहन जी आ रही हैं तो ताऊ जी जा रहे हैं और पूज्यवर पितामह जी यूँ ही रंग में भंग डाल रहे हैं।खैर, अभी यूपी में जो "नाच" हो रहा है वह और परवान चढ़ेगा।वैसे भी भाई! इश्क नचाये जिसको यार, वो फिर नाचे बीच बाजार...। और इश्क इलेक्शन का हो तो खुदा खैर करे।
जनता को नेता से और नेता को जनता से सिर्फ इलेक्शन के समय मियादी मोहब्बत होती है।महबूब की महफ़िल सजती है जिसे विशाल भाषण मंच कहते हैं।यहाँ से सपनों के सौदागर वर्तमान नहीं, भविष्य की बात करते हैं।शायद इसलिए वर्तमान बनता नहीं और भविष्य कभी भी संवरता नहीं।इश्क, इलेक्शन और इमोशनल अत्याचार के सताये साथी बस बड़बड़ाते रहते हैं ' संग (पत्थर) हर शख्स ने हाथों में उठा रखा है
जबसे तूने मुझे दीवाना बना रखा है...।

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