Wednesday, July 27, 2016

वीआईपी बनाम वीआईपी

समाचार का हो सत्यानाश।सुबह-सुबह अपनी बन्नो बिदक गयी।आंगन में अख़बार पटक कर बोली: लो मुकेश-नीता अम्बानी दोनों को वीआईपी सुरक्षा।एक को जेड तो दूसरे को वाई।कल बेटा को मिलेगा एक्स।450 से ज्यादा वीआईपी हो गए। अंग्रेजी के सभी अक्षरों पर एक दिन ऐसे लोगों का ही कब्ज़ा होगा।तुम ककहरा और मनोहर पोथी में मन लगाते रहना।आख़िरकार हम भी तो वीआईपी यानी वेरी इम्पोर्टेंट पुअर यानी गरीबी रेखा से नीचे वाले हैं फिर हमें सुरक्षा क्यों नहीं।तादाद हमारी ज्यादा है या इनकी।ये हमें गदहा और खुद को घोड़ा क्यों समझते हैं।मैंने समझाया।बेबी बन्नो! इ लोग राजा बाबू के खास आदमी हैं।इनका बर्थडे करोड़ों का और टी पार्टी लाखों की होती है।याद करो कि जोधपुर में कैसा जश्न मना था।मात्र 220 करोड़ खर्च हुआ था।आतिशबाज़ी के नाम पर इजाज़त मिले तो मिसाइल, रॉकेट क्या, एटम बम भी फोड़ सकते हैं। लंदन से झूला और थाईलैंड से आर्किड का फूल आया था।हम लोग एक-दूसरे को गुलाब का गुच्छा क्या, खाली गमला भी देने की हैसियत रखते हैं क्या? खुदा कसम! इस बार वेलेंटाइन डे पर ख्याल आया था कि फूलगोभी ही ले लूं।एक पंथ दो काज हो जायेगा।लेकिन कमबख्त की मारी महँगाई तब से सांस फूला रही है।मेड इन इंडिया की चटाई पर रामदेव के सभी आसन आजमा लिये लेकिन सब बेकार।हम लोग आधा पेट खाते हैं और जीभर के मालिक को दुआ देते हैं।जिस दिन भरपेट खाते हैं वही दिन न पर्व या त्यौहार कहलाता है।इ मालिक लोग हर दिन जन्नती खाना खाते हैं और कुछ देर के लिए पाचनतंत्र को आराम देते हैं तो उसे अनशन या उपवास कहते हैं जो बड़ी खबर बनती है।उपवास जूस से नहीं बल्कि कौड़ी के भाव में सरकारी जमीन लेने पर टूटती है।रही बात हम लोग की तो सरकार समझती है कि टट्टी घर में अलीगढ़ का ताला क्यों?चल मन बहलाने के लिए रहीम का दोहा पढ़ते हैं;

चाह गयी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह

जिनको कछु न चाहिए, वे शाहन के शाह।

Sunday, July 24, 2016

इश्क,इलेक्शन और इमोशनल अत्याचार

इश्क, इलेक्शन और इमोशनल अत्यचार।तीनों की कोई सीमा नहीं।जितना करो कम है,जितना सहो कम है।तीनों में सबकुछ जायज।तीनों का आगाज़ अच्छा लेकिन अंजाम ? कल्पना न करें तो बेहतर।
क्योंकि तीनों क्रिकेट के कई फॉर्मेट में खेले जाते हैं।इसलिए आखिरी गेंद और विकेट तक कुछ कह नहीं सकते।अलग बात है कि इलेक्शन में कयास के कारोबारी पहले से शोर मचाते हैं कि इस बार बहन जी आ रही हैं तो ताऊ जी जा रहे हैं और पूज्यवर पितामह जी यूँ ही रंग में भंग डाल रहे हैं।खैर, अभी यूपी में जो "नाच" हो रहा है वह और परवान चढ़ेगा।वैसे भी भाई! इश्क नचाये जिसको यार, वो फिर नाचे बीच बाजार...। और इश्क इलेक्शन का हो तो खुदा खैर करे।
जनता को नेता से और नेता को जनता से सिर्फ इलेक्शन के समय मियादी मोहब्बत होती है।महबूब की महफ़िल सजती है जिसे विशाल भाषण मंच कहते हैं।यहाँ से सपनों के सौदागर वर्तमान नहीं, भविष्य की बात करते हैं।शायद इसलिए वर्तमान बनता नहीं और भविष्य कभी भी संवरता नहीं।इश्क, इलेक्शन और इमोशनल अत्याचार के सताये साथी बस बड़बड़ाते रहते हैं ' संग (पत्थर) हर शख्स ने हाथों में उठा रखा है
जबसे तूने मुझे दीवाना बना रखा है...।

Friday, July 22, 2016

खेमागाह


खेमागाह में आप सबका ख़ैरमकदम है।
आइये अपना तम्बू तानिए। डेरा डालिए।आगाज़-अंजाम के अंदेशे को धुएं में उड़ाते हुए जिसके अंधभक्त हैं, उसके धंधे में लग जाइए।
इधर देखिए! ये अमीर खेमा है।वह रहा गरीब खेमा।नज़र नीची न कीजिए। उधर लाल खेमा है।इधर हरा। ये रहा बैकवर्ड और फारवर्ड खेमा।आजकल यही आपकी पहचान है।सबका अपना खेमा है।खेमेबंदी ही सामाजिक , आर्थिक स्थिति तय करती है। कुछ लोग नफा-नुकसान देख खेमा भी बदलते हैं।एक दिल के टुकड़े हज़ार हुए वाले हालात हैं हमारे। इसलिए किसी खेमे के लोगों के हालात पर मत हंसिए।न ही खुद पर तरस खाइए।क्योंकि रोटी सेंकने के चक्कर में जनता की रोटी जल गयी।अब कीजिए नेता के साथ लुंगी डांस। अच्छा! आप किस खेमे के हैं?
यह सवाल इसलिए जरूरी है कि एक खेमा वाले दूसरे को पसंद नहीं करते।अंदर इतना आक्रोश भरा है कि कब कहां किस खेमे पर फूट जाए कुछ कह नहीं सकते।और ये सब करम है उन आईटी सेल का जो व्हाट्सअप, फेसबुक पर तम्बू ताने है।यह तम्बू जितना ऊपर है उससे कहीं ज्यादा मन के अंदर है।इसलिए हर खेमे में मानव बम है, जिसे डिफ्यूज करना जरूरी है, लेकिन यह काम करे कौन? इंसानियत का खेमा तो खाली है।यहां ज्यादा देर कोई नहीं रुकता।कुत्ता भी आता है तो बस टांग उठाकर चला जाता है।उसके शीतलपेय से आवाज आती है कि अच्छाई करने वाले तेरा मुंह काला।इधर, चौथे खंभे को लोग अब गोरी के घूँघट में लंबा सा घेर है, इमां बिगाड़ो तो पैसों का ढेर है कहने लगे। दर्शक दिलफेंक हंसी के साथ कहते हैं; मैं तो फलां चैनल देखता हूँ। फलां अख़बार ही पढ़ता हूँ।
कल एक गदहा ढेंचू-ढेंचू गाकर कह रहा था कि तेरे खेमागाह से बेहतर मेरी चरागाह है, जहां सभी जानवर एक साथ चरते हैं लेकिन तेरी तरह न लड़ते हैं, न नफरत का जहर फैलाते हैं।