खेमागाह में आप सबका ख़ैरमकदम है।
आइये अपना तम्बू तानिए। डेरा डालिए।आगाज़-अंजाम के अंदेशे को धुएं में उड़ाते हुए जिसके अंधभक्त हैं, उसके धंधे में लग जाइए।
इधर देखिए! ये अमीर खेमा है।वह रहा गरीब खेमा।नज़र नीची न कीजिए। उधर लाल खेमा है।इधर हरा। ये रहा बैकवर्ड और फारवर्ड खेमा।आजकल यही आपकी पहचान है।सबका अपना खेमा है।खेमेबंदी ही सामाजिक , आर्थिक स्थिति तय करती है। कुछ लोग नफा-नुकसान देख खेमा भी बदलते हैं।एक दिल के टुकड़े हज़ार हुए वाले हालात हैं हमारे। इसलिए किसी खेमे के लोगों के हालात पर मत हंसिए।न ही खुद पर तरस खाइए।क्योंकि रोटी सेंकने के चक्कर में जनता की रोटी जल गयी।अब कीजिए नेता के साथ लुंगी डांस। अच्छा! आप किस खेमे के हैं?
यह सवाल इसलिए जरूरी है कि एक खेमा वाले दूसरे को पसंद नहीं करते।अंदर इतना आक्रोश भरा है कि कब कहां किस खेमे पर फूट जाए कुछ कह नहीं सकते।और ये सब करम है उन आईटी सेल का जो व्हाट्सअप, फेसबुक पर तम्बू ताने है।यह तम्बू जितना ऊपर है उससे कहीं ज्यादा मन के अंदर है।इसलिए हर खेमे में मानव बम है, जिसे डिफ्यूज करना जरूरी है, लेकिन यह काम करे कौन? इंसानियत का खेमा तो खाली है।यहां ज्यादा देर कोई नहीं रुकता।कुत्ता भी आता है तो बस टांग उठाकर चला जाता है।उसके शीतलपेय से आवाज आती है कि अच्छाई करने वाले तेरा मुंह काला।इधर, चौथे खंभे को लोग अब गोरी के घूँघट में लंबा सा घेर है, इमां बिगाड़ो तो पैसों का ढेर है कहने लगे। दर्शक दिलफेंक हंसी के साथ कहते हैं; मैं तो फलां चैनल देखता हूँ। फलां अख़बार ही पढ़ता हूँ।
कल एक गदहा ढेंचू-ढेंचू गाकर कह रहा था कि तेरे खेमागाह से बेहतर मेरी चरागाह है, जहां सभी जानवर एक साथ चरते हैं लेकिन तेरी तरह न लड़ते हैं, न नफरत का जहर फैलाते हैं।
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