Wednesday, September 7, 2016

न प्रेम रहा न पत्र


ए दोस्त।दोस्ती का वास्ता।मुख न मोड़ना।आज उस गुरु को भी नमन करना, जिसने तेरा ताम्रपत्र यानी प्रेमपत्र पकड़ा था। प्रेम और पत्र दोनों चबा गए थे ताकि कहीं खून खराबा न हो जाए।मास्टर साहब को पता था कि मशीनी युग में न प्रेम रहेगा और न पत्र।हाँ दोनों का विकास बहुत होगा।सच में विकास की बयार बही और प्रेमगली अति सांकरी से फोरलेन हो गयी। गज़ब का चौड़ीकरण हुआ प्रेम का और पत्र का भी। तभी तो टैटू और स्टीकर बेवजह और बेजगह है। घर में सिम वन कॉलिंग।बाहर सिम टू कॉलिंग।और ऑफिस में मल्टीपल सिम कालिंग। व्हाट्सएप्, फेसबुक, ट्विटर, मेल, मैसेंजर के बाद जिओ जीभर के । इधर, अमीर खुसरो भी लपेटे में हैं।आ पिया इन नैनन में, पलक ढाँक तोहे लूं, न मैं देखूँ गैर को न तोहे देखन दूं पर आपत्ति है कि मोहब्बत में मतलबपरस्ती ? प्यार में पाबंदी ? आप भी जीभर देखिए।हमें भी नैन सेंकने दीजिए।दस मिनट का हो या दो मिनट का।आपका हो या बाप का।अरे कहां भटक गये।कुछ याद आया।पहली दफे तो ट्राई के लिए सादा कागज़ ही फेंका था फिर भी उसे देखकर मुस्कुराने से चेहरे की बारह मांसपेशियों की कसरत हो गयी थी।वो सादा कागज़ का कमाल था कि बीपी कभी हाई तो कभी लो।अचानक हँसा तो शरीर की 72 मांसपेशियां हरकत में आ गयी थीं।
अब तो चंद शब्द कम्पोज कर सेंड किया और संदेश पहुंचा सात समंदर पार।न मांसपेशियों को तकलीफ़ और न कोई इमोशनल लोचा। जज़्बात जगाने को भी जतन करने पड़ते हैं।बस जो जज्बात बचे हैं, वही जिन्दा रहे तो काफी है।आखिर में उस मास्टर साहब को नमन जो अक्सर कहते थे
हम इश्क के बंदे हैं, मज़हब से नहीं वाकिफ
गर काबा हुआ तो क्या, बुतखाना हुआ तो क्या!

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