Saturday, November 16, 2013

रुपया ज्यादा गिर रहा या इनसान?

और कितना गिरेगा रुपया? रुकेगा भी या गिरने का सिलसिला जारी ही
रहेगा. मंत्री महोदय मंथन कर रहे हैं. सोना गिरवी रखने की सोच रहे
हैं. चाय की चुसकी के साथ गरमा-गरम बहस अपने शबाब पर थी.
‘ज्ञान गौरव’ से लेकर ‘खिचड़ी प्रसाद’ यानी मास्टर जी से लेकर
मिड-डे मील के कर्मी तक अपनी बातें जोरदार तरीके से रख रहे थे.
चाय की दुकान पर बहस में शिरकत कर रहे एक बुजुर्ग ने कहा-
‘‘भाई! हमें तो चंद्रशेखर सरकार के समय की बात याद आ रही है,
जब सोना गिरवी रखना पड़ा था.’’ एक सज्जन ने कहा, ‘‘भाई आपको
पता है कि हम लोग सोना के लिए कितने पागल हैं. एक सर्वेक्षण के
अनुसार घरों व बैंकों में तकरीबन 15 हजार टन सोना लोगों ने जमा
कर रखा है. यह सोना 743 अरब डॉलर के बराबर है. अगर यह बाहर
आ जाये, तो इससे देश व
समाज का भला हो सकता है
या नहीं? गांव से लेकर शहर
तक में लोग सोने में निवेश
करते हैं. कोई जेवरात के नाम
पर, तो कोई भविष्य के नाम पर. उन्हें देश की आर्थिक व्यवस्था से कोई
लेना- देना नहीं. रुपया गिर रहा है, तो गिरे, पर सोने से प्रेम का धागा
टूटे नहीं. एक वह जमाना था, जब रुपये और डॉलर में ज्यादा अंतर
नहीं था. पांच रुपये बराबर एक डॉलर. और आज? क्या कहा जाये,
मानो रुपये की कोई औकात ही नहीं है.’’ इतने में एक दूसरे सज्जन
चीख पड़े- ‘‘आप लोग बेकार की माथापच्ची कर रहे हैं. कल मुट्ठी में
पैसा लेकर जाते थे, झोला भर सामान लाते थे, आज झोला भर रुपये
ले जाते हैं और मुट्ठी में सामान लाते हैं वगैरह, वगैरह. भाई! रुपया
कितना भी गिर जाये, लेकिन मैं दावे के साथ कहता हूं कि इनसान
जितना तो हरगिज नहीं गिरेगा. अखबारों की सुर्खियां देख लो. न्यूज
चैनल देखो. रोज इनसान कितना गिरता जा रहा है! वोट के बदले नोट.
संसद में सवाल पूछने के
लिए रुपये. महिला पत्रकार के साथ सामूहिक
बलात्कार, ससुर ने बहू को हवस का शिकार बनाया. पोते ने ले ली
दादा जी की जान. जमीन के लिए मां को मार डाला. शिक्षक ने की
छात्र के साथ छेड़खानी. मछली के पेट में हथियार रख करता था
तस्करी, मृत जवान के पेट में रखा बम. इन खबरों के बाद आप लोग
क्या कहेंगे? रुपया ज्यादा गिर रहा है, या फिर इनसान. जो किसी का
भक्त बनने के भी काबिल नहीं, उसे स्वार्थ के लिए भगवान बना देते
हो. फिर कोई हादसा होता है, तो कुछ लोग समर्थन में और कुछ लोग
विरोध में सड़कों पर उतर जाते हो. कुरसी पाने के लिए हर ईमान-धर्म
सबकी बलि चढ़ा देते हो. फिर कुरसी मिलते ही खुद को खुदा से कम
नहीं समझते.’’ चाय दुकान में सन्नाटा पसर गया. सभी ने सिर झुका
लिया. दुकानदार बोला, ‘‘अंकल! मुङो कवि प्रदीप का गाना याद आ
रहा है, देख तेरी संसार की हालत क्या हो गयी भगवान, कितना बदल
गया इनसान..’’

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