चिलमन भाई आजकल दिन भर राग मालकौंस लागा चुनरी में दाग
छुपाऊं कैसे गाते रहते हैं. मानों इन्हीं को कैदी नंबर 1528,1529
आवंटित हुआ है. वैसे इशरत मामले की खबर के बाद कभी-कभार
आपका क्या होगा जनाबे अली.. भी गुनगुना लेते हैं. इधर, गुजरात में
हर तीसरा बच्च कुपोषित वाली रिपोर्ट से बहुत हैरान व परेशान हैं कि
आखिर क्या होगा इन नेता तुम्हीं हो कल के का? मैंने पूछा, भाई! इन
सबका मूल कारण क्या है? चिलमन भाई बोले, यह स्वर्णिम अर्थ युग
है. इसमें अर्थ के बिना किसी का कोई अर्थ (वजूद) नहीं. आप भोगवि
लास एक्सप्रेस में सफर कर रहे हैं या ‘इज्जत’ का मंथली पास बनाने
के लिए लाइन में लगे हैं. या फिर दुिखयारी लोकल ट्रेन का टिकट
लेकर इंतजार व सब्र की घड़ी में किस्मत को कोस रहे हैं. यह सब निर्भर
करता है आपके पाचन तंत्र पर. वजह दिल-दिमाग ही नहीं, जिंदगी व
जुल्म के सारे रास्ते पेट से
फूटते हैं. नतीजतन इस तंत्र
का मजबूत होना गंठबंधन
सरकार की तरह निहायत ही
जरूरी है. वरना जिस तरह
महाराष्ट्र में बिहारी को देखा जाता है, वैसे ही हर जगह आप देखे जायेंगे
और दुबले-पतले होने (सामाजिक स्थिति)के कारण विचित्र प्राणी
कहलायेंगे. क्योंकि पाचन तंत्र गड़बड़ होने की सूरत में आप समझ ही
नहीं पायेंगे कि पहले शौचालय जाना जरूरी है या देवालय. पहले
पुस्तकालय जायें या मदिरालय. बच्चे को पहले विद्यालय भेजें या
चित्रलय. खुद सचिवालय में कब्जा जमायें या अनाथालय में. दूसरी
अहम बात यह है कि इसका खामियाजा आपको भविष्य में निगरानी के
हत्थे चढ़ कर भी भुगतना पड़ सकता है, तो कभी आय कर वालों का
निशाना बनना पड़ सकता है. जैसे कि अभी एक एमवीआइ का हाल है.
इससे पहले भोजपुर में एक बीइओ 20 हजार रुपये पचा नहीं पाया.
भागलपुर की सीनियर एडीएम भी कमजोर पाचन शक्ति की शिकार हुइर्ं.
कई बीइओ, डीइओ से लेकर आइएएस दंपती (अरविंद जोशी-टीनू
जोशी जो तकरीबन साढ़े तीन अरब रुपये डकार गये) तक खराब
पाचन तंत्र के कारण अपनी नाक कटवा बैठे. कई लोग खराब पाचन
तंत्र के कारण ही तिहाड़, बेऊर व बिरसा मुंडा जेल की शोभा बढ़ा रहे
हैं. कई का कैरियर खत्म हुआ और होनेवाला है. इसलिए पाचन तंत्र की
पाठशाला सभी विभागों में लगनी चाहिए. अगर पाचन तंत्र मजबूत है
तो आप करोड़ों का चारा खा सकते हैं. अलकतरा पी सकते हैं. करोड़ों
का स्टांप साफ कर सकते हैं. किसानों का यूरिया हजम कर सकते हैं.
बेफोर्स हो या कोयला. टीबी मरीजों की दवा या फिर हाइवे की ईंट या
बालू-पत्थर. सब कुछ पचा सकते हैं. इंदिरा आवास निगल कर डकार
तक नहीं लेंगे. जय हो जन वितरण प्रणाली का नारा लगाते हुए ऊपर से
नीचे तक मैनेज नामक एक्सरसाइज कर दाने-दाने नहीं बल्कि बोरी-
बोरी पर अपना नाम स्वार्णाक्षर में लिखवा सकते हैं.
छुपाऊं कैसे गाते रहते हैं. मानों इन्हीं को कैदी नंबर 1528,1529
आवंटित हुआ है. वैसे इशरत मामले की खबर के बाद कभी-कभार
आपका क्या होगा जनाबे अली.. भी गुनगुना लेते हैं. इधर, गुजरात में
हर तीसरा बच्च कुपोषित वाली रिपोर्ट से बहुत हैरान व परेशान हैं कि
आखिर क्या होगा इन नेता तुम्हीं हो कल के का? मैंने पूछा, भाई! इन
सबका मूल कारण क्या है? चिलमन भाई बोले, यह स्वर्णिम अर्थ युग
है. इसमें अर्थ के बिना किसी का कोई अर्थ (वजूद) नहीं. आप भोगवि
लास एक्सप्रेस में सफर कर रहे हैं या ‘इज्जत’ का मंथली पास बनाने
के लिए लाइन में लगे हैं. या फिर दुिखयारी लोकल ट्रेन का टिकट
लेकर इंतजार व सब्र की घड़ी में किस्मत को कोस रहे हैं. यह सब निर्भर
करता है आपके पाचन तंत्र पर. वजह दिल-दिमाग ही नहीं, जिंदगी व
जुल्म के सारे रास्ते पेट से
फूटते हैं. नतीजतन इस तंत्र
का मजबूत होना गंठबंधन
सरकार की तरह निहायत ही
जरूरी है. वरना जिस तरह
महाराष्ट्र में बिहारी को देखा जाता है, वैसे ही हर जगह आप देखे जायेंगे
और दुबले-पतले होने (सामाजिक स्थिति)के कारण विचित्र प्राणी
कहलायेंगे. क्योंकि पाचन तंत्र गड़बड़ होने की सूरत में आप समझ ही
नहीं पायेंगे कि पहले शौचालय जाना जरूरी है या देवालय. पहले
पुस्तकालय जायें या मदिरालय. बच्चे को पहले विद्यालय भेजें या
चित्रलय. खुद सचिवालय में कब्जा जमायें या अनाथालय में. दूसरी
अहम बात यह है कि इसका खामियाजा आपको भविष्य में निगरानी के
हत्थे चढ़ कर भी भुगतना पड़ सकता है, तो कभी आय कर वालों का
निशाना बनना पड़ सकता है. जैसे कि अभी एक एमवीआइ का हाल है.
इससे पहले भोजपुर में एक बीइओ 20 हजार रुपये पचा नहीं पाया.
भागलपुर की सीनियर एडीएम भी कमजोर पाचन शक्ति की शिकार हुइर्ं.
कई बीइओ, डीइओ से लेकर आइएएस दंपती (अरविंद जोशी-टीनू
जोशी जो तकरीबन साढ़े तीन अरब रुपये डकार गये) तक खराब
पाचन तंत्र के कारण अपनी नाक कटवा बैठे. कई लोग खराब पाचन
तंत्र के कारण ही तिहाड़, बेऊर व बिरसा मुंडा जेल की शोभा बढ़ा रहे
हैं. कई का कैरियर खत्म हुआ और होनेवाला है. इसलिए पाचन तंत्र की
पाठशाला सभी विभागों में लगनी चाहिए. अगर पाचन तंत्र मजबूत है
तो आप करोड़ों का चारा खा सकते हैं. अलकतरा पी सकते हैं. करोड़ों
का स्टांप साफ कर सकते हैं. किसानों का यूरिया हजम कर सकते हैं.
बेफोर्स हो या कोयला. टीबी मरीजों की दवा या फिर हाइवे की ईंट या
बालू-पत्थर. सब कुछ पचा सकते हैं. इंदिरा आवास निगल कर डकार
तक नहीं लेंगे. जय हो जन वितरण प्रणाली का नारा लगाते हुए ऊपर से
नीचे तक मैनेज नामक एक्सरसाइज कर दाने-दाने नहीं बल्कि बोरी-
बोरी पर अपना नाम स्वार्णाक्षर में लिखवा सकते हैं.
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